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Saturday, September 24, 2011

वीर पुरुष


सभी बच्चे आम के बाग में खेल रहे है, खेल क्या रहे है बीसों आम के पेड़ पर लदे लाखो आमो में कुछ कच्चे और कुछ पक्के , और करीब तीस बच्चो का जमघट , एक आम क्या गिरा , पका या कच्चा पर सारे बच्चे टूट पड़े,जिसे मिला वह अपने को बड़ा तीसमार समझता है, सबके सामने खाता भी नहीं कही कोई छीन न ले, शैतान और बड़े बच्चो के डर का भूत सवार , धीरे से कही अपने अन्तः वस्त्र में छिपा लेता है, उससे छोटे बच्चे के जीभ से लालच की लार टपक रही है, फिर सभी अपने खेल में मस्त|

ये क्या हवा तेज हो रही है,दूर से धुल भी उड़ रहे है, आम के पेड़ झूमने लगे हवा के साथ, एक आम , चार आम , अरे हर जगह आम ही आम| अब आम कहा रखू, यहाँ रखा गिर गया वहा रखा गिर गया, आज तो किस्मत ही खुल गयी , जिसका कभी आम पाने का मौका नहीं आता था, आज तो उसके सरे थैले भर गए|

पर और सारे बच्चे कहाँ गए , कोई दिख क्यों नहीं रहा है, इतनी तेज हवा , इतना धुल, पूरा बाल और शरीर धूल धूसित , सभी घर चले गए लगता है, मै अकेला रह गया ,मै किधर जाऊ , कुछ तो दिखाई नहीं दे रहा है , देखने का प्रयास करता आँख में धूल भर जाती, बिलकुल असहाय , बेबश ,आम कि कहाँ चिंता रही , पता नहीं गिर गए , आँख में आंसू , सिसकियाँ ,व्याकुलता , घबडाहट |

चलने की सोचता भी हवा तेज ,जैसे गिरा देती,आखिर तूफानी हवा और मुश्किल से तीस पैतीस का वजन , पहली बार लगा के हवा में इतनी ताकत होती है|

अरे तू यहाँ , मै तुझे खोज रहा था , आवाज जानी पहचानी , कुछ राहत मिली | अपनी बाहों को मेरे चारो तरफ करके जैसे के कही भटक न जाये
लगभग एक किलोमीटर घर , बीच में कोई रूकावट नहीं , सपाट खेत कटे हुए ,जून जुलाई का माह , हवा चलने भी दे तो न| हम चल तो दिये पर पता नहीं किधर , इतनी धूल भरा अँधेरा कि दो मीटर दूर देखना मुश्किल, हवा कभी तेज होती कभी धीमी और फिर एकाएक तेज , बैठ जाते हमको अपनी गोद में लेकर कही इसे चोट न लग जाये , फिर जैसे ही हवा थोड़ी धीमी होती , मंद कदमो से आगे बढ़ते, फिर बैठते और चलते |

सिर्फ ये किलोमीटर घर , लगभग ये घंटे हो गए पर अभी नहीं पहुचे, घर पहुचेंगे भी नहीं , मालूम नहीं, जिस रस्ते से हम आया करते मात्र दस मिनट में , एक घंटे से ज्यादा ,

बैठ जा , धीरे से उठ, मुझे पकड़ के रख , आंखे मूद के रखना , चिंता मत कर , बस अभी पहुच जाते है, थोड़ी दूर और , मै हू तुम्हारे साथ , डरना मत , वो घर दिख रहा है|

पर मुझे तो कुछ नहीं दिखाई दे रहा था , मुझे बिश्वास है कि उन्हें भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था , वह तो मेरे मन को धैर्य देने के लिए येसा कः रहे थे|

तुम लोग इतना मन करने के बाद भी चले जाते हो , और तू उमेश इसको क्या साथ ले गया , मालूम नहीं की इतनी तेज आंधी चल रही , रास्ता नहीं दिख रहा है, अगर पेड़ कि कोई डाल ऊपर गिर जाती तो |

नहीं मौ , मै तो आज खुद ही चला गया था , अगर भैया न होते तो मै आ भी नहीं पाता|

घर पर तो मुझे बहुत सीधा और मेरे बड़े भाई को शैतान का पद मिला था, दोनों कभी साथ खेलते भी नहीं थे जबके वो मुझसे केवल दो साल बड़े थे |

पर साहस का येसा मिसाल सुना तो था कहानियो में पर देखा पहली बार|

यह प्यार और भी बलवान हो हो जाता है क्योकि आम समय में मुझे वास्तब में बहुत सताते थे पर वो दिन मै कभी नहीं भूल सकता ,शायद अक्षरों में वो ताकत नही के उस पल ये हर छोटे यहसास को बयां कर सके|

पर उस  समय में विवेक और शौर्य का उदहारण निश्चित रूप में उनकी प्रशंशा में सर झुक कर प्रणाम करता है|

आज वो हमारे बीच में नहीं है २४ साल  कि छोटी आयु में |

पर उनके यादो को अक्षरों में समेट कर नमन करना चाहता हू |




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