जाने कैसी धुन में हूँ?
नजाने कैसे उधेड़बुन में हूँ?
गुत्थियाँ सुलझाता हूँ,
पर और उलझ जाती है,
और बढ़ जाती है;
खुद को समझाता हूँ,
बहलाता भी हूँ,
फिर भी समझ नही आती;
पता नही कौन सी उलझन में हूँ।
जाने कैसी कौन सी धुन में हूँ।
कहने को तो,
वक़्त चलायमान है ही,
जिंदगी भी गतिमान है ही,
आचार व्यवहार,
आहार विहार,
सब तो चल ही रहे हैं;
सुबह से शाम,
रात और दिन,
भागदौड़ आराम हो ही रहा है;
पर न तो मन मे शांति ही है,
और न ही कोई सकून में हूँ।
न जाने किस धुन में हूँ।
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