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Tuesday, December 15, 2020

नजरिया

मेरे जीने का जरिया
मेरा नजरिया
मुझसे कोई नही छीन सकता।

किसकी सुनू,
किसकी न सुनू,
हरेक के अपने अपने फंडे हैं;
खुश हो जाने के,
नाराज हो जाने के,
सबके अपने अपने हथकंडे हैं;
क्यों गुजार दूं,
अपनी सम्पूर्ण जिंदगी?
सुनने में, समझने में,
समझाने और मनाने में?
सभी के अपने साज यहां,
राग अलग, अन्दाज यहाँ;
फिर मैं क्यों वक़्त बर्बाद करूँ,
सही समय का इंतजार करूँ;
जीवन में वो सब करना है,
जो खुद के लिए भी बढ़िया है।

जीवन तो नही है अति विशाल,
गुजर जाते है सालो साल;
हर पल को जी लो जी भरके,
तिल भर का न रह जाये मलाल;
समुचित क्षण के चक्कर मे,
न फसना किसी भौचक्कर मे;
जीवन को जंजाल न बनने देना,
सब जस की तस बस रहने देना;
सब व्यर्थ अनर्थ की बातों से,
दूर रहो तो बढ़िया है।

हर कोई यहां पर आतुर है,
तुम पर हुकुम चलाने को,
हृदयगति और सांसो से भी,
व्याकुल हैं,
व्यापार बढ़ाने को;
तुम नही हो कोई निर्जीव वस्तु,
खुद का अपना है स्वतन्त्र अस्तित्व;
तुम खुद ही खुद के मालिक हो,
खुद का अपना नजरिया है।

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