मेरे मुल्क मुझे
माफी देना
झूठा जयकारा कर न
सका,
गलाफाड़ मै नारा कह न
सका,
चाहे तो वतन परस्ती
कहना।
लोगों ने वतन को
लूटा है,
देशभक्ति का ढोंग
दिखा करके;
धन संपदा का
सत्यानाश किया,
बहुभांति स्वांग रचा
करके;
मैंने विमुक्त
विद्रोह किया,
चाहे तो वतन खिलाफी
कहना।
जज्बाती जोशीले
नारे,
खुली सड़कों (जुबां)
पर केवल दिखते हैं;
झूठ फरेब धोखा
मक्कारी,
इन सबके मन (घर) में
मिलते है;
इन गद्दारों का
पर्दाफाश किया,
चाहे तो गद्दारी
कहना।
जो जितना बांग लगाता
है,
वह उतना ही पाप
छिपाता है;
कमियों असफलता को
छुपाने को,
हर बार (सौ बार)
बाते बदलता (बनाता) है;
इन पापियों की पहचान
किया,
चाहे तो मुझे पापी
कहना।
झूठा मेरा व्यवहार
नही,
देशभक्ति मेरा
प्रचार नही;
जोर जोर चिल्लाने
गुर्राने का,
मेरा कोई विचार नही;
दिल से देशभक्ति की
है,
चाहे तो नाकाफी कहना।
देशप्रेम का दम्भ
दिखाने वाले,
दुश्मन से भी हाथ
मिलाया है;
सौहार्द दुशाला भेट
किया,
छककर बिरियानी खाया
है;
यह चरित्र उजागर
किया हमने,
चाहे तो मुझे
दुश्चरित्र कहना।
देशभक्ति का डींग
हांकने वाले,
बलात्कार जिश्म
फरोसी में पकड़े जाते हैं;
मातृभूमि की सुरक्षा
की सौगंध लेने वाले,
तस्करी और जासूसी
में पकड़े जाते हैं;
देश के ऐसे गद्दारों
को,
मेरा प्रयास है
जगजाहिर करना।
चोर लुटेरों के
चंगुल से,
यह देश बचाना चाहता
हूँ;
हर नागरिक को
सुरक्षा सम्मान मिले,
यह हकीकत बनाना
चाहता हूँ;
हरामखोरों से देश को
बचाना है,
चाहे तो मेरी
हरामखोरी कहना।
सच्ची देशभक्ति के
लिए,
अच्छी नियत जरूरी
है;
हर व्यक्ति और हर
चीज की,
अहमियत के बिना
अधूरी है;
हर तबके को खुश रखने
की नियति रखता हूँ,
चाहे तो मेरी बद
नियति कहना।
हो सकता है भयानक
भीड़ में,
तुम शामिल मुझको न
पाओ;
हाहाकार हडकंप मचाने
के,
तुम काबिल मुझको न
पाओ;
तूफानी रातों में
दीपक सा जलता हूँ,
चाहे तो नाकाफी कहना।
मुझे खौफ नही मर
जाने का,
भयंकर झंझावातों से;
गम भी नही सितारों के,
गर्दिश में गुजर
जाने का;
शैतानों से सदा लड़ता
रहूँगा,
चाहे तो तुम मेरी
शैतानी कहना।
देशभक्ति के नाम पर,
नफरत का जहर फैलाया;
हर आवाज उठाने वालों
पर,
कमीनों ने कहर है
ढाया;
इन कमीनों को बेनकाब
करता हूँ,
चाहे तो कमीनापन
कहना।
हो सकता है मै बेकार
लगूं,
बदसूरत और बीमार
लगूं;
यह देश चलने वालों
को,
मै सबसे बड़ा गद्दार
लगूं;
कहते क्या लोग फर्क
नही पड़ता,
चाहे तुम भी मुझे
गद्दार कहना।
सच्चाई से मुंह मोड़
लूं,
मेरा दिल गवारा करता
नही;
चुपचाप जुल्म देखता
रहूँ,
मेरे जेहन को जचता
नही;
सच को बस सच जैसा
कहता हूँ,
चाहे तुम मुझे झूठा
कहना।
जब ग़दर भीड़ की हट जायेगी,
मजबूत खड़ा मुझे
पाओगे;
जब छलावे की घटा छट
जायेगी,
सच के साथ अकेला
पाओगे;
मन से मै मातृभूमि
पर मरता हूँ,
चाहे तुम जो भी
समझना।
पा जाऊं जग में पद
प्रतिष्ठित,
ऐसी कोई चाहत नही;
बन जाऊँ जनता का
सिरमोर,
ऐसी मेरी कोई हसरत
नही;
बुराई की खिलाफत
करना मेरी आदत है,
चाहे तो इसे बुरी
आदत कहना।
हो सकता है मै मगरूर
लगूं,
बगावत के नशे में
चूर लगूं;
शासन के विरोधी खेमे
में,
मै सबसे ज्यादा
मशहूर मिलूँ;
बदमाशों से बगावत
करता हूँ,
चाहे तुम मुझे बागी
समझना।
14.09.2019
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