घनघोर तिमिर को चीर,
आशाओं का सबेरा
आएगा;
चट्टानों की छाती
फाड़ कुटज,
जीवन का गीत
सुनाएगा;
आततायी अधिनायक भी,
मिट्टी में मिल जाते
हैं;
कालजयी सम्राटों के,
सिहांसन भी हिल जाते
हैं;
सामन्तवाद को रौंद
समय,
समता का गीत सुनाएगा।
अटल अडिग चट्टानों
को भी,
लावों सा पिघलते
देखा है;
दोपहर के तपते सूरज
को,
हर शाम ढलते देखा
है;
जिस बादशाही का
घमण्ड तुझे है,
चिरस्थाई न रह
पायेगा।
दुनिया में कोई दर्द
नही,
जिसकी दवा हासिल न
हो;
कोई ऐसे हालात नही,
जो हौसलों से हासिल
न हों;
कितनी भी विकट
व्यवस्था हो,
निश्चय परिवर्तित हो
जायेगा।
माना की वक्त भयंकर
है,
आफतों की आग निरंतर
है;
मुश्किल है कठिनाई
है’
मजबूरियों का समन्दर
है;
बदलाव शाश्वत है
श्रृष्टि का,
संसार बदलता जायेगा।
अभिमानी राजाओं को
बहुधा,
मिट्टी भी न नसीब
हुई;
गिद्ध कौवों के
हवाले हुए,
कालान्त अजीबोगरीब
हुई;
झूठ फरेब छल और
प्रपंच,
ज्यादा दिन नही टिक
पायेगा।
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