स्वतंत्रता
की असली जागीर मांगता हूँ,
है
भुखमरी गरीबी बदहाली और अशिक्षा,
अपराध
मुक्त भारत की तस्वीर मांगता हूँ;
स्वतंत्रता
की असली जागीर मांगता हूँ,
अन्याय
मुक्त भारत की तस्वीर मांगता हूँ।
हम
अगस्त और जनवरी में,
राष्ट्रीय
पर्व है मनाते;
इक़बाल
ऊधमसिंह की,
कहानियाँ
(कुर्बानियां) सुनाते;
अंग्रेजों
की हैवानियत की,
जुल्म
दास्ताँ बताते;
विदेशियों
से मुक्ति का,
बड़ा
जश्न हम मनाते;
स्वतंत्रता
के बाद भी, खस्ताहाल क्यों है भारत;
अय्याश
शासकों से जबाब मांगता हूँ।
अजीब
स्वास्थ्य संकट,
दयनीय
अर्थव्यवस्था;
सफाई
और पढाई का,
ढुलमुल
(नाजुक) है व्यवस्था;
विलासिता
में नेता,
मजबूर
(असहाय) सारी जनता;
शासकों
की शैतानियों से,
बुरा
हाल है वतन का;
भारत
को पुनः सोने की चिड़िया बनाये,
हर
कूचे हर गली से ऐसा वीर मांगता हूँ।
क्या
विदेशी सरकारों का,
बदल
जाना है आजादी;
क्या
हर पांच साल में,
चुनाव
हो जाना है आजादी;
क्या
अंग्रेजों का भारत से,
सिर्फ
चले जाना है आजादी;
क्या
चुनावी र्रैलियों की भीड़ से,
नेताओं
के नारों में है आजादी;
क्या
सत्ता और शासकों के,
गलियारों
में है आजादी;
हर
नागरिक के चेहरे से, मुस्कान न छिनने पाए;
एक
स्वाभिमानी भारत की जमीर मांगता हूँ।
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