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Thursday, November 28, 2019

इन्सान है तो



इन्सान है तो इन्सान के,
हर हाल काम आयें;
नफरतों से परे,
कोई दुनिया बनायें।

अपने लिए ही जीना,
कोई जीना नही होता;
है ख़ाक जिंदगानी अगर,
दूसरे के सुख से गदगद,
तेरा सीना नही होता;
निज स्वार्थ त्याग सबमे,
सौहार्दता बढ़ाएं।

कितना अजीब इन्सान,
दुविधा में फंस गया है;
सुविधा की खोज में वो,
हर रोज है निकलता;
मजबूर तंग ऐ हालत में,
वो उलझ गया है;
आसान और दिलचस्प,
ऐ दुनिया बनायें।

दुनिया की भागदौड़ में,
बस धूल फांकता है;
असहाय बेसहारा सा,
तकल्लुफ में ताकता है;
जाने कौन मृग मरीचिका के खातिर,
जीते जी दुनिया में,
हर दर्द झेलता है;
सब यहाँ साधारण और सरल,
अपना जीवन बनायें।

वैमनस्य और बैर से,
कोई काम नही होता;
मन को मलिन रखने से,
कोई अराम नही होता;
दिल में हमेश रहती है,
एक अजब सी बेचैनी;
नफरतों के नासूर से,
कोई काम नही होता;
सब में परस्पर प्रेम की,
पहचान बनायें।

चाहत अजीब सी है,
व्यवहार भी अनोखा;
आलीशान अट्टालिकाओं की,
सुविधाएँ सब है धोखा;
संसाधनों के पीछे कितना तुम भागते हो,
अय्याश अंधी दौड़ में अपनों को छोड़ जाते हो;
दूसरों की चाहतों पर,
खुद की खुशियाँ लुटाएं।

आसमान सा ख्वाब लिए,
इन्सान घूमता है;
कल्पना कशिश की,
कोरी कहानियों में;
अरमान ऐ तसल्ली, सकून ऐ जिंदगी,
इन्सान बावरा सा हर रोज ढूँढता है;
सौम्य और शालीन,
अपना जीवन बनायें।
10.09.2019

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