इन्सान
है तो इन्सान के,
हर
हाल काम आयें;
नफरतों
से परे,
कोई
दुनिया बनायें।
अपने
लिए ही जीना,
कोई
जीना नही होता;
है
ख़ाक जिंदगानी अगर,
दूसरे
के सुख से गदगद,
तेरा
सीना नही होता;
निज
स्वार्थ त्याग सबमे,
सौहार्दता
बढ़ाएं।
कितना
अजीब इन्सान,
दुविधा
में फंस गया है;
सुविधा
की खोज में वो,
हर
रोज है निकलता;
मजबूर
तंग ऐ हालत में,
वो
उलझ गया है;
आसान
और दिलचस्प,
ऐ
दुनिया बनायें।
दुनिया
की भागदौड़ में,
बस धूल फांकता है;
असहाय
बेसहारा सा,
तकल्लुफ
में ताकता है;
जाने
कौन मृग मरीचिका के खातिर,
जीते
जी दुनिया में,
हर
दर्द झेलता है;
सब यहाँ साधारण और सरल,
अपना
जीवन बनायें।
वैमनस्य
और बैर से,
कोई
काम नही होता;
मन
को मलिन रखने से,
कोई
अराम नही होता;
दिल
में हमेश रहती है,
एक
अजब सी बेचैनी;
नफरतों
के नासूर से,
कोई
काम नही होता;
सब
में परस्पर प्रेम की,
पहचान
बनायें।
चाहत
अजीब सी है,
व्यवहार
भी अनोखा;
आलीशान
अट्टालिकाओं की,
सुविधाएँ
सब है धोखा;
संसाधनों
के पीछे कितना तुम भागते हो,
अय्याश
अंधी दौड़ में अपनों को छोड़ जाते हो;
दूसरों
की चाहतों पर,
खुद
की खुशियाँ लुटाएं।
आसमान
सा ख्वाब लिए,
इन्सान
घूमता है;
कल्पना
कशिश की,
कोरी
कहानियों में;
अरमान
ऐ तसल्ली, सकून ऐ जिंदगी,
इन्सान
बावरा सा हर रोज ढूँढता है;
सौम्य
और शालीन,
अपना
जीवन बनायें।
10.09.2019
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