ऐ आग नही बुझने देना
मानवता की मशाल
बनकर,
तुम सदा ही जलते
रहना;
विद्रोह बवन्डर को ऐ
शूरबीर,
तुम आग न बुझने देना।
क्या हुआ सत्ता
संसाधन पर,
गर आततायी का राज
हुआ;
बहशी और बलशाली
राजाओं से,
संतापित पूरा संसार
हुआ;
कुछ भी हो प्रतिशोध
की ज्वाला,
ऐ वीरों न रुकने
देना।
सत्ता संपत्ति छिन
जाने से,
कोई फ़कीर नही बन
जाता है;
पर स्वाभिमान मर
जाने से,
इन्सानी जमीर ही मिट
जाता है;
अभिमान का मान सदा
ऊंचा रखना,
ऐ वीरों न झुकने
देना।
महाकाय दुर्दम पर्वत
की,
मजबूत जड़ें हिल
जातीं है;
भूकम्प के भयंकर
तवाही से,
मलबे मिट्टी में मिल
जाते हैं;
धैर्य पराक्रम और
साहस,
हिम्मत को न हारने
देना।
जब जुल्म हद से बढ़
जाए,
तुम राह तूफानी
अपनाना;
जब पानी सर से गुजर
जाए;
तुम खुद ही सुनामी
बन जाना;
परिवर्तन का महावेग,
किसी हाल न रुकने
देना।
रातें कितने भी
अँधेरी हों,
हर रोज सबेरा आता
है;
परिस्थितियाँ कितनी भी
प्रतिकूल हों,
हालातों में बदलाव
तो आता है;
आवाज बुलन्दी जुनूनी
जज्बे को,
तुम कभी न टूटने
देना।
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