जुल्म की खिलाफत कर
न सका,
तो है धिक्कार जवानी
को।
तेरे सामने अत्याचार
हुआ,
मासूमों का बलात्कार
हुआ;
निर्दोषों का नर
संहार हुआ,
इंसानियत शर्मसार
हुआ;
तेरे अधिकारों पर भी
प्रहार हुआ,
एक बार नही बार बार
हुआ;
तू मूक बधिर बन
देखता रहा,
सब जुल्म ज्यादती
सहता रहा;
दो त्याग धरा के
इंसानों,
इस कायरता की कहानी
को।
तुमसे बेहतर वो
नन्हा पंक्षी,
लड़ जाता भयानक
साँपों से;
बच्चों की जान बचाने
को,
भिड़ जाता झंझावातों
से;
एक अदना सा दीपक भी,
न डरता घनेरी रातों
से;
जालिम को मिटाकर
सार्थक कर दो,
इस जोश ए जिंदगानी
को।
खून खौल जाए नसों में,
जब अत्याचार कहीं देखे;
अंगारें भभक जाएँ आँखों में,
जब भ्रष्टाचार कहीं देखें;
तेरे हाँथ फड़कने लगे वहां जहाँ,
जुल्म त्रासदी तू देखें;
जब मानवता मरने लगे,
चुन लेना राह तूफानी को।
23.08.2019
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