Followers

Sunday, December 15, 2019

ललकार रही हैं बेटियां

धर रूप प्रचण्ड हौसले बुलन्द,
चिग्घार/हुंकार रही हैं बेटियां;
नामर्द नपुंसक पुरुषों को,
ललकार रही हैं बेटियां।

हमने तप त्याग तपस्या की,
तू सबल स्वस्थ सुन्दर रहे;
हर कठिन अग्नि परीक्षा दी,
तेरा मान गौरव पद अमर रहे;
कर्ज वफ़ा हर दर्द का हिसाब,
अब मांग रही हैं बेटियां।

हम निर्बल नही, न अबला हैं,
यह बात तुम्हें समझाती हूँ,
हम सक्षम शक्ति सबला हैं,
आज हकीकत तुम्हें बताती हूँ;
अबलापन के चोंगे को,
अब उतार रही हैं बेटियां।

चिता की जलती अग्नि मे,
जबरन मुझको झोंका गया;
पुरुष परम्परा के नाम पर
जौहर मुझ पर थोपा गया;
फालतू के तुगलकी फरमानों को,
इन्कार रही हैं बेटियां।

माँ बहन बेटी बन करके,
हर हाल पुरुषों का साथ दिया;
पर पुरुषवादी नामर्दों ने,
आघात विश्वासघात किया;
अब और नही सह सकते,
ये समझा रही हैं बेटियां।

परम्परा संस्कृति के नाम पर,
मेरे साथ दानवीय व्यवहार हुआ;
परिवार समाज की दहलीज़ पर,
हर तरह का अत्याचार हुआ;
बकवास व्यवस्था सड़ी संस्कृति को,
अब फटकार रही हैं बेटियां।

साहित्य धर्म इतिहास ने,
नारियों को कमजोर बताया है;
बार बार कमजोर बता करके,
वास्तव में कमजोर बनाया है;
इन सामाजिक मनु विधानों को,
अब दुत्कार रही है बेटियां।
वास्तव में नारियाँ कमजोर नही,
सिर्फ कमजोर बताया जाता है;
सदियों से यही बता बताकर पुरुषों की,
नामर्दी को छुपाया जाता है;
इस दुष्प्रचार गलत धारणा को,
अब उभार रही हैं बेटियां।

इज्जत आबरू मर्यादा घर की,
सिर्फ नारियों से अपेक्षा की जाती हैं;
खुद दोगले दुश्चरित्र इन पुरुषों द्वारा,
हर जगह हर समय उपेक्षा की जाती है;
पुरुषवादी सड़ी मानसिकता को,
धिक्कार रही हैं बेटियां।

नारियों का स्वतंत्र अस्तित्व है,
निजता है व्यक्तित्व है कृतित्व है;
पराश्रित पराजित परतन्त्र नही,
सबल सुदृढ़ स्थायित्व है स्वामित्व है;
बुलन्द आजादी का अमर (आसमानी) पताका,
अब फहरा रही हैं बेटियां।

तेरी नापाक नाइंसाफी रूढ़ि परम्परा,
तेरा तंत्र तुझको अर्पित है;
तेरी झूठी शान गौरव मान मर्यादा,
तेरा मन्त्र तुझको सादर समर्पित है;
जो तेरा है तुझको सब,
आज लौटा रही हैं बेटियां।

एक जुल्म दो जुल्म,
जुल्म पर जुल्म तुम करते गए;
कहीं तेरा गौरव घट न जाए,
चुपचाप हम सहते गए;
हद हुई तेरी हैवानी का,
अब हुंकार रही हैं बेटियां।

तुमको लगता है हम पैदा हुए,
तेरी घरगुलामी करने के लिए;
माँ बहन बेटी बनकर,
तेरे जुल्म ज्यादती सहने के लिए;
दे छोड़ भरम और यह गलतफहमी,
ये उद्गगार रही हैं बेटियां।

बस बहुत हुआ अब और नही,
तेरी बदनीयती तेरी बदमाशी का;
तुमने बड़ा दुरुपयोग किया,
मेरी चुप्पी मेरी ख़ामोशी का;
हर वार हर प्रहार का जबाब मिलेगा,
ये बता रही बेटियां।

छेड़छाड़ हत्या अपहरण यहाँ,
कन्यावध बलात्कार होता है;
दहेज दानव का तांडव यहाँ,
हर दिन व्यभिचार दुर्व्यवहार होता है;
छुपकर बचकर अब तंग आ गई,
दुनिया को दिखा रही है बेटियां।

पुरुष शक्ति का घमण्ड तोड़,
नारियां दम दिखलाएंगी;
पुरुषवादी सब बन्धन छोड़,
अपना अस्तित्व बचाएंगी;
(अपना परचम लहराएंगी)
नारियाँ किसी से कम नही,
अपना दम दिखा रही हैं बेटियां।

No comments:

Post a Comment