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Tuesday, December 3, 2019

जिन्दगी गुजार दी


उमर गुजार दी,
जिन्दगी संवारने में;
पर जिन्दगी नही संवरी।

ख्वाइशें भी सजाई हमने,
सपने भी देखे हमने;
हसरतों चाहतों उम्मीदों की,
मनमुताबिक दुनिया बनाई हमने;
आजीवन संघर्षरत रहा,
मिन्नते पूरी करने को;
पर ऐ मिन्नते भी हैं कि,
कभी होती नही है पूरी।

रात दिन उहापोह जद्दोजहद करते,
कुछ बनाने में, कुछ बिगाड़ने में;
बनाने बिगाड़ने में गलतियाँ करते,
फिर उमर लगा देते,
गलतियाँ सुधारने में;
गलतियों के जंजाल में फंसते गये,
पर गलतियाँ नही सुधरी।

खानापूर्ति भी की है,
रश्म अदायगी भी की है;
कहीं दुनिया वाले बुरा न मान जाएँ,
इसलिए दुनिया से दोस्ती (दिल्लगी) भी की है;
दूसरों के लिए दर्द,
तो सिर्फ दिखावा है;
असल में सबको अपनी,
बस अपनी पड़ी है।

हम घर परिवार बनाते हैं,
हम रंगों से, सम्बन्धों से;
बखूबी सजाते हैं, संवारते है;
हर उलझन को, सुलझाते हैं;
कभी रंग बिगड़ता है,
कभी सम्बन्ध बिखरता है;
फिर से सजाते हैं,
सजाते ही रहते हैं;
बेरंग हुए रिश्तों की गुत्थी,
अब तक नही सुलझी।

कभी अत्यन्त प्रसन्न होते,
कभी अति उदास हो जाते हैं;
कभी अति आशान्वित होते हैं,
तो कभी भयंकर निराश हो जाते हैं;
आशा निराशा के मकडजाल में,
जीवन ज्योति है जकड़ी।

खाली हाँथ आये हैं हम,
खाली हाँथ ही जायेगे;
लोभ लालच ईर्ष्या तृष्णा,
इस दुनिया में ही रह जायेंगे;
सब मिट्टी में मिल जाते हैं,
हस्ती कितनी भी हो बड़ी।

कुछ गिनी चुनी खुशियों के लिए,
भविष्य योजना बनाते हैं;
कमरतोड़ जहमत करके,
वर्त्तमान की ख़ुशी गंवाते हैं;
भविष्य कहाँ किसने देखा,
बस वर्तमान स्थिति बिगड़ी है।
02.11.2019

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