उमर
गुजार दी,
जिन्दगी
संवारने में;
पर
जिन्दगी नही संवरी।
ख्वाइशें
भी सजाई हमने,
सपने
भी देखे हमने;
हसरतों
चाहतों उम्मीदों की,
मनमुताबिक
दुनिया बनाई हमने;
आजीवन
संघर्षरत रहा,
मिन्नते
पूरी करने को;
पर
ऐ मिन्नते भी हैं कि,
कभी
होती नही है पूरी।
रात
दिन उहापोह जद्दोजहद करते,
कुछ
बनाने में, कुछ बिगाड़ने में;
बनाने
बिगाड़ने में गलतियाँ करते,
फिर
उमर लगा देते,
गलतियाँ
सुधारने में;
गलतियों
के जंजाल में फंसते गये,
पर
गलतियाँ नही सुधरी।
खानापूर्ति
भी की है,
रश्म
अदायगी भी की है;
कहीं
दुनिया वाले बुरा न मान जाएँ,
इसलिए
दुनिया से दोस्ती (दिल्लगी) भी की है;
दूसरों
के लिए दर्द,
तो
सिर्फ दिखावा है;
असल
में सबको अपनी,
बस
अपनी पड़ी है।
हम
घर परिवार बनाते हैं,
हम
रंगों से, सम्बन्धों से;
बखूबी
सजाते हैं, संवारते है;
हर
उलझन को, सुलझाते हैं;
कभी
रंग बिगड़ता है,
कभी
सम्बन्ध बिखरता है;
फिर
से सजाते हैं,
सजाते
ही रहते हैं;
बेरंग
हुए रिश्तों की गुत्थी,
अब
तक नही सुलझी।
कभी
अत्यन्त प्रसन्न होते,
कभी
अति उदास हो जाते हैं;
कभी
अति आशान्वित होते हैं,
तो
कभी भयंकर निराश हो जाते हैं;
आशा
निराशा के मकडजाल में,
जीवन
ज्योति है जकड़ी।
खाली
हाँथ आये हैं हम,
खाली
हाँथ ही जायेगे;
लोभ
लालच ईर्ष्या तृष्णा,
इस
दुनिया में ही रह जायेंगे;
सब
मिट्टी में मिल जाते हैं,
हस्ती
कितनी भी हो बड़ी।
कुछ
गिनी चुनी खुशियों के लिए,
भविष्य
योजना बनाते हैं;
कमरतोड़
जहमत करके,
वर्त्तमान
की ख़ुशी गंवाते हैं;
भविष्य
कहाँ किसने देखा,
बस
वर्तमान स्थिति बिगड़ी है।
02.11.2019
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