मेरा
जूनून मुझे जीने नही देता,
मेरा
अश्क मुझे रोने नही देता;
मेरा
गुरूर है आसमां के भी ऊपर,
ऐ
मजबूर मुझे होने नही देता।
ख्वाइशों
का समन्दर है,
बदलाव
का बवन्डर है;
इंसाफ
कायम करने का,
जज्बात
मेरे अन्दर है;
मेरा गुमान भी बड़ा गजब है,
बेजुबान
मुझे होने नही देता।
दर्द
भरी चीख जब कभी,
मेरे
कानों पर पड़ती है;
मजलूम
मेहनतकशों की जब भी,
लाचारी
मुझे दिखती है;
सिहर
उठता है रोम रोम मेरा,
दर्दनाक
वाकिए मुझे जीने नही देता।
हर
क्षण तत्पर रहता हूँ मै,
जुल्म
की खिलाफत करने करने को;
निर्भीक
निडर सा चलता हूँ,
मानवता
की हिफाजत करने को;
मेरी
रूह मेरी धड़कन मेरी सांस,
मुझे
चैन से रहने नही देता।
व्याकुल
विह्वल हो जाता है मन,
जब
भी सोने की कोशिश करता हूँ;
अंगारों
से भर जाते हैं नयन,
जब
रोने की कोशिश करता हूँ;
वह
रही वयार बगावत की,
निश्चल स्थाई रुकने नही देता।
दीवानगी
है पागलपन है,
उत्त्साह
उमंग मेरे मन में;
अद्भुत
अदम्य अवारापन है,
अथाह
चाह मेरे जीवन में;
मेरे
बेख़ौफ़ बेपरवाह आदतें,
मुझे
मौत से भी डरने नही देता।
मेरा
मिशन मेरे सर चढ़ बोलता है,
मेरे
विचार मेरे लहू में दौड़ता है;
मजबूर
हूँ अपने लक्ष्य के सामने,
लक्ष्य
मेरे सीने में धडकता है;
मदहोश
से हालत हो गये है मेरे,
मेरे
ख्यालात मुझे होश में होने नही देता।
सपनो
में भी मै बडबडाता हूँ,
कोई
जुनूनी जोशीले गीता गाता हूँ;
खुलती
अचानक जब नींद मेरी,
अचम्भा
अवाक् सा रह जाता हूँ;
डूब
गया हूँ नशे में इस कदर,
शान्ति
और सकून कभी होने नही देता।
कैसे
मै मुंह फेर लूँ,
दर्द
हकीकत के हालातों से;
कड़वाहट
कटुता कपट और,
कुटिलता
से भरे आघातों से;
दर्द
का आलम हर तरफ,
बेदर्द
मुझे होने नही देता।
अगर
मै रो दूंगा तो क्या होगा,
मेरे
मासूम नौनिहालों का;
मै
सो जाऊंगा तो क्या होगा,
सदियों
से सोने वालों का;
दिल
तो कहता है सो लूँ रो लूँ,
पर
वक्त सोने रोने नही देता।
मेरा
कुछ अपना शेष नही है,
ख्वाब
कोई अवशेष नही है;
जो
है सब अपनों का है,
व्यक्तिगत
कुछ विशेष नही है;
हमदर्द
हमसफर हूँ अपनों का,
अपनों
से दूर होने नही देता।
कहीं
जुल्म होते देखता रहूँ,
कतई
मेरे जेहन में नही;
अत्याचार
के तले जियूं,
यह
सब सीख मेरे जीवन में नही;
अन्याय
कितना भी खौफनाक और सबल हो,
पर
मेरा जमीर मुझे झुकने नही देता।
जुनून
को जिन्दा रखूँगा,
आक्रोश
निरन्तर पालूंगा;
विकट
बगावत की चिंगारी को,
समय
के सांचे में ढालूँगा;
क्रोधाग्नि
की विकराल ज्वाला को,
शान्त
कभी होने नही देता।
पैरों में छाले पड़ जाते है,
अथक
निरन्तर चलते चलते;
आंखे
और जबां सूख जाते हैं,
बेसुधों
में सुध भरते भरते;
मानवता
की महा मशाल मै,
हर
हाल कभी बुझने नही देता।
11.10.2019
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