मंत्र
जाप तप हवन से,
किस्मत
की कली न खिलती है;
देखा
है यहाँ इन्सान को,
अति
व्याकुल कांपते डरते;
ईश्वर
सम्मुख नत मस्तक,
भीरू
सा गिरते पड़ते;
प्राण
न्योछावर करने से भी,
भाग्योदय
की सूरत न बनती है।
देवकृपा
दर्शन के लिए,
मीलों
का सफर तय करते हैं;
प्रचण्ड
धूप कड़ी ठण्डक,
बहुभांति
मुसीबत सहते है;
जीवन की गाढ़ी कमाई
को,
चढ़ाने से न तकदीर
बदलती है।
भूखे प्यासे रहकर के
यहाँ,
यज्ञ पाठ अनुष्ठान
करते हैं;
कुलदेवी को खुश करने
का,
हर सम्भव विधि विधान
करते हैं;
दिन रात दुआ करने से
भी,
बदहाली नही बदलती है।
उमर
बीत जाती है यहाँ,
ईशकृपा
तकते तकते;
हर
कोशिश प्रभु बन्दन से भी,
कोई
नही रस्ते बनते;
संचय
संपत्ति चढ़ाने से भी,
कृपा
नेत्र न खुलती है।
पीला
वस्त्र कमण्डल पकड़,
दुर्जन
साधू बन जाते हैं;
राहुकेतु
का डर दिखाकर,
धन्धा
व्यापार चलाते हैं;
हाथों
की चन्द लकीरों में,
भाग्य
कभी न बसती है।
भगवानों
ने इन्सान नही,
इन्सानों
ने भगवान बनायें हैं;
मूक
बधिर भगवानों के घर भी,
इन्सानों
ने ही बनाये हैं;
महाप्रलय
में भी इन मूर्तियों से,
आवाज
तक नही निकलती है।
25.09.2019
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