कोई अगडी या ऊची जाति का यह इसलिये उसमे प्रतिभा है ये कोई पैमाना नहीं है , अगर वास्तब में येसा होता तो संविधान निर्माण के समय सबसे योग्य डा. भीमराव आंबेडकर को ही क्यों माना जाता, येसे संविधान के निर्माण की जिम्मेदारी जो विविधताओ से भरे देश में , विकासोन्मुख हो , और हर वर्ग और हर जाति का सम्मान हो सके, |
दुःख तो तब होता है जब लोग यह कहते है कि अयोग्य व्यक्ति को जिम्मेंदारी का पद मिलता जिससे देश का भविष्य खराब होता है और दांव पर लगता है, इसमे मै कहना चाहूँगा कि आरक्षण तो आजादी के बाद की पहल है,,इसके पहले पूरी सत्ता तो इन्ही के हाथ में थी,,,इन्होने देश को अंग्रेजो के हाथ बेच दिया ,,,विलासिता में जीबन जिया ,,,,,समाज के बहुत बड़े हिस्से हो उपेक्षित रखा,,,उस समय इनके अंदर सात्विक बिचार नहीं आये,,,शासन करना अपना पैत्रिक अधिकार समझते थे,,,जिस समय पूरा योरोप विकास और क्रांति का बिगुल बजा रहा था उस समय ये अन्धविश्वास और विलासिता के मद में डूबे हुए थे,,,आज आरक्षण की मदद से जब वही उपेक्षित वर्ग विकास कर रहा और देश के विकाश में अतुलनीय योगदान दे रहा है,,,उन्हें बुरा लग रहा है|
मुझे जो समझ में आता है और जो कडुई हकीकत है,,,वह यह कि,,पहले इनके सामने कोई प्रतियोगिता नहीं थी,,यही राजा थे,,यही शासक थे,,,इन्हें हर पद और विलासिता वरासत में मिलती थी,,,पर आज प्रतियोगिता करना पड़ता है,,,उनसे कही जादा योग्य छोटी जाति का लड़का आगे निकल जाता है,,तो बात गले से नीचे नहीं उतरती. सहन नहीं होता.
आरक्षण के बावजूद आज भी किसी दफ्तर और कार्यालय में छोटी जाति की भागीदारी बहुत कम है,,,और उनकी कम संख्या के कारण उनके ऊपर बहुत दबाव होता है,,,ऊची जाति के तुलना में जादा ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होते है,,,क्योकि उनके पास न तो कोई बड़े राजनेता और बड़े अधिकारी का साया रहता है और नौकरी जाने का दर बना रहता है,,क्योंकि संघर्ष करके नौकरी पाया और वही नौकरी उसके परिवार और बच्चो के भविष्य का आधार होता है,,उनके पास कोई खास पैत्रिक संपत्ति होती है|
मैंने अपने शिक्षण काल में खुद देखा है कि अगड़ी जाति के ज्यादातर लडके स्कूल में दादागिरी करते है,,कक्षा और विद्यालय और चौराहे पर मारपीट करते है ,,नेतागिरी करते है,,,यहाँ तक छोटी जाति के शिक्षक का अपमान करते है,,इसके वजह या तो उनका कोई चाचा ,,पापा या और कोई उस विद्यालय में मेनेजर , प्रधानाचार्य होता है,,,फिर उनके मार्क्स बढ़ जाते है,,परीक्षा में उनकी कापिया लिखी जाती है,,,
छोटी नौकरी तो उनके पांव पर रहती है,, बड़ी नौकरी में भी उनकी पैठ होती है,,कोई न कोई रिश्तेदार या राजनेता मिल जाता है,,,पहचान का,,,और एक अच्छा पद प्राप्त कर मौज करते है.
शायद आरक्षण के खिलाफ आवाज उठाने की वजह और भी हो सकती है कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज तेज हो रही है,,जिसमे बड़े अधिकारी और राजनेता जेल के अंदर जा रहे है और इनके चुने जाने के मौके कम हो रहे है,,मेह्नात करने में कभी रूचि रही नहीं ,,,तो फिर इनको अपनी बादशाहत और एकाधिका छिनता दिख रहा है,,,दुःख होना लाज़मी है,,
दूसरी बात जो समझ में आती है वो ये है जिसको आज तक इन्होने अपने तलवे चाटते देखा है आज वही जो सामने कुर्सी लगा के बैठता तो निश्चित रूप से बुरा लग सकता है.
जहाँ तक कोई मुद्दा बनाने का सवाल हो,,,और किसी मुद्दे के खिलाफ आवाज उठाने का सवाल है मेरे हिसाब से इस दुनिया में सबसे आसान काम यही है ,,किसी व्यक्ति या मुद्दे की बुराई करना,,,क्योकि सविधान से विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है,,,
आरक्षण एक अचूक दवा है जो गरीबी और पिछडेपन ,,,तथा जातिवादी रुपी गंभीर समस्या का एकमात्र इलाज कर सकती है.
हमारे संस्कृति के निर्माता जातिवादी जहर बोया और क्या वजह है कि वह खुद जातिवाद का विरोध करना शुरू कर दिए है,,,और संविधान को दोषी मानते है कि संविधान में छोटी जातियों को रियायते देकर जातिवाद को बढ़ावा दिया गया, जिसके कारण आज हमें हर जगह अपनी श्रेणी और जाति लिखनी पड़ती है|
अगर वो येसा कहते है तो उनकी यह स्वार्थपरता है और कुछ नहीं | अगर जाति वाद के खिलाफ है तो क्या वह छोटी जातियों के साथ रिश्ते बना सकते है,,,कभी नहीं |
आज मीडिया समाचार पत्रों में जिन महँ भ्रष्ट नेताओ और अधिकारियो का नाम आया वे शायद अगड़ी जातियों से ही है |
आरक्षण के खिलाफ आवाज उठाना एक सनक है,,जिसमे तुक्छ मानसिकता छुपी हुयी है| आरक्षण की पहल करने वाले जिन्होंने इसे अस्तित्व में लाया वे विद्वान थे और महान थे ,,युग श्रष्टा थे,,,चाहे वो वीपीसिंह या भीमराव आंबेडकर हो|
उन्हें आज हम प्रणाम करते है ,,,नमन करते है|
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