आप बिकुल थी कहते है अनुराग सर, चेन्नई की यह हृदयविदारक घटना से रूह कांप गए, मानो कि शरीर से प्राण पखेरू कुछ समय के लिए यमराज दरबार भ्रमण करने चले गए, जिस गुरु को कभी भगवान से पहले पूजा जाता था यानी भगवान से बड़ा मन जाता था, उसे कक्षा में चाकू और छुरियों से मारा जाता है और हत्या की जाती है, ये आपकी बात को पूरी तरह साबित करता है कि यह उस टीचर की हत्या नहीं वरन पूरे समुदाय और समाज की हत्या है,,यही समाज और समाज के लोग ये अध्यापक को नैतिकता और ईमानदारी का पहरेदार बनाते है,,राष्ट्र के भविष्य नियंता और निर्माता समझते है,,, समाज का अन्य हिस्सा चोरी करे ,, हत्या करे,,,झूठ बोले,,,रिश्वत ले,,,पर टीचर ,,,,कभी नहीं,,,मजाक और डपट के साथ दूसरा व्यक्ति कहते चूकता नहीं,,आप टीचर हो,, पढाते हो,,क्या पढाते होगे बच्चे को|
शायद टीचर उसे ही अपना भाग्य और नियति समझ लेता है,,आत्मग्लानी को पी जाता है,,आत्मा सिसकती है पर जुबान बंद रहती है,,,क्यों,,पता नहीं|
मैंने देखा है कि एक टीचर को स्कूल और स्कूल के बाहर झूठे आरोपों में उलझा कर मुक़दमा चलाया गया,,मीडिया को मसाला मिला ,,तिल का ताड़ बनाया कर प्रसारित किया,,टीचर की व्यक्तिगत,,पारिवारिक और सामाजिक जीवन का बाट लग गया,, आर्थिक स्थिति चूर चूर हो गयी,, उसके अपने भी उससे घृणा करने लगे,,,दूसरे लोगों की तो बात छोड़ दीजिए,,खिल्ली उड़ाते हुए बोलते है,,’देखो यही टीचर था जिसने वह बुरा काम किया था,,बेचारा टीचर सर झुकाए आगे निकल जाता है,, अपमान और आभाव की अग्नि में जलता हुआ,,कभी तो खुद को अकेले या खभी परिवार के साथ मौत के हवाले हो जाता है,,या फिर पागल हो जाता है,,,उधर बीस साल बाद मुकदमे का नतीजा क्या निकालता है,,,टीचर को निर्दोष है,, उसे बाइज्जत बारी किया जाता है,,,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है,, टीचर की दुनिया तबाह हो चुकी होती है,,,लोगों के पास बचाता क्या है सिर्फ खोखली सहानुभूति ,,वह भी किसी काम की नहीं,,,येसा होता है समाज,,एसे होते है लोग,,,
और दूसरी चीज यह कि अगर कोई राजनीतिक हत्या या घपला या घोटाला होता तो राजनीती और प्रशासन इसे खूब चर्चित बनाता और भयंकर राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास करता ,,,और अगर किसी टीचर ने किसी बच्चे को थप्पड़ मर दिया होता फिर देखते मीडिया और प्रशाशन का कार्य कौशल ,,,पर येसे में कोई घर के बहार निकलना ही नहीं चाहता ,,सबको सांप सूंघ गया है,,
वैसे भी वर्त्तमान शिक्षा प्रणाली अतिशय उदारवादी और लचीली है,, जहाँ बच्चो को अधिकतम स्वतंत्रता देने की बाट की जाती है,,,स्वक्षन्द और उन्मुक्त वातावरण| माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी बार बार इस बात बार बल दिया की,,,शारीरिक या मानसिक दंड न्यायाचित नहीं है,,,पर समझ में नहीं आता कि एक टीचर की खुले आम नृशंश हत्या के बाद ये क्या कहना चाहेगे,,,कहेंगे भी क्या बस लीपापोती के आलावा|
आखिर शब्दों को मरोडने माहिर जो हैं|
इस वाकिया का टीचर समुदाय पर तो बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ेगा,,,टीचर बच्चो से डर कर रहेगा,,यानी डरा डरा और सहमा सहमा,,तो फिर यह जग जाहिर की मन में दर या संशय बुधिमार्ग को बाधित कर देता है,,और आत्म विश्वास की कमी हो जाती है,, इस स्थिति में क्या अध्यन अध्यापन सुचारू रूप से चल पायेगा ,,कभी नहीं,,टीचर का भयमुक्त और स्वंतंत्र रहना अति आवश्यक है| निश्चित रूप से साक्षरता दर तो देश की सुधरेगी पर गुणवत्ता का आभाव होगा,,और समाज अव्यस्थित और अनियंत्रित रहेगा,,,नतीजतन सामाजिक बुरायियोंं और भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा |
चूकि विद्यार्थी समुदाय एक नाजुक उम्र से गुजरता है तो निश्चित रूप से येसी घटनाओ के फिर होने की सम्भावनाये बलवती होंगी,,,क्योकि विद्यार्थी आवेश और ऊर्जा का प्रतीक होता है,,जहाँ उसके हर निर्णय आवेगातम होते है,,,
टीचर की गिरती सामाजिक स्थिति का अंदाज मुझे उस समय लगा जब मैं हाल ही में हीरो होंडा बाईक खरीदी और नंबर डालने के साथ बड़ी खुसी मन से बीच में लिखवा दिए ‘शिक्षक’ पर हुआ यूं कि जो भी देखता कहता कि आपको यह नहीं लिखवाना चाहिए था,,,यह एक या दो लोगों के द्वारा नहीं वरन लगभग पन्द्रह लोगों के द्वारा कहा गया,,तो मुझे पता चला ,,,कि आज का अध्यापक गुरुदेव नहीं वरन मास्टरजी बन गया,,जो अत्यंत पिछड़े पन का प्रतीक है,,,|
उस समय तो हद हो गयी जब एक हमारे जन पहचान के व्यक्ति अपनी बहा की शादी की चर्चा चला रहे थे तो उनके सामने बहुत सरे विकल्प रखे गए,,,डॉक्टर,,इंजीनियर,,,क्लेर्क ,,,पुलिस,,,फोर्स और अध्यापक,,,शायद आपको थोड़ी देर के लिए अविश्वसनीय लगे सुनकर कि उन्होंने क्या बोला,, जैसे ही अध्यापक का विकल्प उनके सामने आया और बोले पड़े ‘’मै अध्याप के साथ तो अपनी बहन का रिश्ता कतई नहीं करूँगा’’| इससे आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि उनके इस कथन की पीछे क्या कारण हो सकता है,,,जो मुझे समझ में आता है,,कि अध्यापक के पास ऊपरी कमाई नहीं होती|
कुछ भी हो यह वाकिया बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है,,टीचर की नहीं समाज की हर है,,टीचर तो अपना फर्ज अदा करते हुए शहादत को प्राप्त हुआ पर समाज और प्रशासन ने टीचर के ऊपर पाबंदियां लगा के रखी ,,शायद उसी कि परिणति हुयी है इस रूप में,,,निश्चित रूप से समाज पराजित हुआ,,,हर गया,,,क्योकि लाख कोशिश कर ले समाज और समाज के लोग पर उनके ऊपर लगा ये कीचड यह धब्बा मिटने वाली नहीं है|
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