मनुष्य को समस्त प्राणियों
में सर्व श्रेष्ट माना जाता है, इसकी वजह सिर्फ यह है कि उसके पास चमत्कारी चिंतन
शक्ति है जिससे वह अपने अमूर्त बिचारों को कार्यरूप प्रदान करता है और पृथ्वी का
सबसे समझदार होने का गौरव प्राप्त करता है| और वह मानव की अद्भुत बिचार शक्ति ही है जिसके जरिये वह
आधुनिक मानव कहलाने के काबिल हुआ| यही नहीं , वह अपने विचार वैभव के बल पर इश्वर
के द्वारा रचे गए इस प्रकृति को अपने जीवन के अनुकूल और सुन्दर बनाया| अब उसे
सूर्या की तेज धूप, तेज आंधी, विकराल ठंड नहीं डराते| अब उसे लाखों मील की यात्रा पैदल
नहीं करनी पड़ती, अब उसे अंतरिक्ष और आकाशीय पिंड दैवीय नहीं लगते,और अब हमारी
दुनिया पृथ्वी के किसी एक टुकड़े तक सीमित नहीं रह गया है| और सबसे गौरव की बात तो
यह है कि दुनिया के हर कोने कोने का इंसान हमारा वास्तविक भाई और रिश्तेदार हो गए
है| इन सबके पीछे केवल बिचारों की शक्ति का ही जदूओ है न कि भावनाओ का|
यह मनुष्य की विचार शक्ति
ही है जिससे जीवन के सामाजिक , आर्थिक ,धार्मिक और तकनीकी क्षेत्र में आशातीत से
कही जादा सफलता अर्जित की है| क्या यह किसी को लगता है कि यह सब भावनावों से संभव
है ,,,मेरे बिचार से कभी नहीं| फिर यह कहना की मनुष्य भावनावों का पुंज है,,बिलकुल
नागवार है|
हाँ मै मानता हूँ कि मनुष्य
में भावनाये है पर वह भावनाओ का पुंज है,,बिलकुल मिथ्या है| यह सबको मालूम है कि
विकास करना मनुष्य का स्वभाव है,,हाँ भावनाओं से मनुष्य विकाश तो नहीं कर सकता पर
जनसँख्या जरूर बढ़ा सकता है ,,कहने के लिए समाज की निरंतरता | पर यहाँ तो केवल
गिनती बढती है , गुण तो कही दिखता नहीं | और विकास तो गुण से ही संभव है | फिर यह
मानना कि मनुष्य भावनावों का पुंज है मनुष्व के स्वाभाविक गुण विकाश को चुनौती
करना है ,जो कभी संभव ही नहीं हो ,,विकाश की प्रक्रिया तो निरतर और सतत है | जब तक
धरती पर मानवता रहेगी तब तक विकास का वेग चलता और चलता ही रहेगा|
अगर हम मनुष्य के विकास का
इतिहास के पन्नों को पलते तो हमें खुद ब खुद ज्ञात हो जायेगा कि मनुष्य में
भावनाये प्रबल है बिचार या फिर और कुछ| सुनहली धरती के गोंद में जबसे प्राणियों या
मानवता का आगमन हुआ तब से या विकास की अनेको बुलंदियों को चूमता रहा है| पहिये और
अग्नि का अविष्कार आज के सूचना क्रांति से भी कही जादा प्रेरक और महत्वपूर्ण रहे
है| पाषाण युगीन और आदिम मनुष्य आज एयर कंडीशन बंगले और कार तक की यात्रा, टूटे
फूटे नाव और घोडा गाडियों से तेज रफ्तार कार और हवाई जहाज तक का सफर और पत्थर के
नुकीले और हंसिये से लेकर बलिस्टिक मिसाइल और नुक्लेअर हथियार तक सब विचारों के
जादू है न कि भावनाओ के|
हमारे महानतम वैज्ञानिक ,
सर्वश्रेष्ट धर्म प्रणेता और समाज सुधारक , शिक्षा शास्त्री और विद्वानों ने अपने
विचारों से न की भावनावो पूरी दुनियो को दिशा दी जिसके नाते आज हम मनुष्य कहने
लायक बने है ,,
क्या भावनावो से एवरेस्ट पर
चदना ,समुद्र के गोते लगाना, और अंतरिक्ष की खतरे भरे साहसिक कार्य संभव है ,,इसके
लिए जरूरत होती है नियोजन, प्रशिक्षण और कार्य कुशलता की आवश्यकता होती है जो केवल
प्रबल इच्छा शक्ति और अदम्य मनोदशा से ही संभव है|
सबसे महतवपूर्ण बात तो ये
है कि आज हम एकाकी जीवन की तरफ बढ़ाते चले जा रहे है, जहा पर हमें दूसरे के सुख
दुःख के विषय में सुनाने और समझने की फुरसत नहीं है ,,हम अपनी स्वार्थपरक और
भागदौड की जिन्दगी में इतना व्यस्त और उलझे हुए है कि दूसरे क्या अपने परिवार के
सदस्यों तक का हालचाल तक पूछने का मौका नहीं मिलता है,,,इसका कारण चाहे जो भी हो
पर एक बात तो सत्य है कि यहाँ भावनाये नहीं वरन विचार प्रबल है| नहीं तो लालच और
धूर्तता से कोई किसी की जान क्यों लेता और मनुष्य होकर मनुष्य का दुश्मन क्यों बना
रहता ,,चाहे वह परिवआर , समाज और देश के अंदर या बाहर का क्यों न हो |मेरा या
मानना है कि जहाँ भावना है वाहन दुशमनी नहीं है और जहा दुशमनी है तो वह भावना नहीं
है|
मै एक बात तथ्य और भी जोडना
चाहूँगा की जिस घर में किसी को जादा भावनात्मक प्रेम मिला वह जीवन में असफल रहा जब
उसे अकेला जीवन जीना पड़ा, और आज की इस कश्म्कश्म दुनिया में भावना प्रधान व्यक्ति
को बुधू और मूर्ख कहा जाता है जिसे कोई भी और कभी भी बेवकूफ बनाया जा सकता है और जिसका
जीवन असंभव हो जाता है| फिर सभी जिए जा रहे है तो यह क्या है ,,यह भावना कभी नहीं
हो सकता|
AWESOME DEBATE.SAID VERY WELL
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