मेरे घर के द्वार पर औरतो का जमघट, जैसे कई मधुमखियाँ पुष्प का रस इकठ्ठा करने की होड में लगी हो | वैसे भी औरतो का जमघट कुछ बिशेष अवसर पर ही होता है , बेचारियो कों घर के काम से फुरसत मिले तो न , ऊपर से पति जी का रुआब, सासूजी का डंडा, ससुर जी का फरमान कम थोड़ी होता है |
‘अरे गुरूजी कों ठीक से बैठने तो दो’ मेरी माँ ने कहा , लगता है तुम बाबाजी के सर पे बैठ जाओगे ‘
साधुजी अपने एक चेले के साथ मेरे गांव पधारे और उनकी डमरू की दैवीय ध्वनि से गांव के समस्त नारी समूह इकट्ठा हो गया| लगभग ४० घरों की पूरी बस्ती जो डेढ़ किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है | शायद किसी और अवसर पर औरतो की इतनी भीड़ जुटे , पर आज तो येसा लगा जैसे इन्द्र सिंहासन की बोली लगने वाली है|
मेरी माँ बहुत सादर और सम्मान के साथ चारपाई बिछाई और साधुजी कों बैठाया जैसे वो साधू नहीं खुद ब्रह्मा हो|
मेरी माँ धर्मभीरू और विश्वासी प्रकृति की है जो तथाकथित शगुन और अपसगुन पर पूर्ण विश्वास रखती थी, उन्हें साधू बचन और ओझा मन्त्र कुछ जादा ही पसंद था और कभी – कभी हमारे तार्किक सोच की बात लगा देती थी|
मै साधुजी के चेले के साथ लगभग २०० मीटर दूर , अमरुद के पेड़ के नीचे बैठ गया और चेले से हल्के मन से बातचीत शुरू की|
शुरू हुआ बाबाजी का जादू और करिश्मा ,पीट वस्त्र ,लंबी दाढ़ी, गले और हाथ में माला था कमंडल, बगल में एक जादुई थैला |
‘बाबा मेरा हाथ देख लीजिए , एक औरत बोली | मुझे भूख नहीं लगती , गाय मर गयी, खेत सूख गया , पति की कमाई नहीं हो पा रही है , बेटा कुछ उखडा सा रहता है , इस साल हमारे घर में बीमारी ने घर जमा लिया |
बाबा ने हाथ देखा और बोला ‘पुत्री! तुम्हारे ऊपर शनि देव का प्रकोप है , ग्रह स्थिति खराब है, पेड़वा दैत का शाया है|’
औरत बोली , ‘बाबाजी ! कब तक येसा रहेगा , कुछ उपाय बताइए |’
बाबा ने हाथ कों तेजी से झटका , आंखे मूदी, सर दो झकझोरा , जैसे बाबाजी कों मिरगी की बीमारी हो , और कभी-कभी झटका आता हो , कुछ बडबडाया और उचक कर बोले , “ तुम्हे प्रतिदिन सूर्योदय के समय पीपल पर पानी डालना पड़ेगा लगातार तीन सप्ताह , पांच व्रत रखने होगे , एक बार वैष्णवदेवी का दर्शन करना होगा , लगातार दश मंगलवार ब्राहमण कों कों भोजन कराना होगा , तभी तुम्हारे जीवन में सुख समृधि आ सकेगी’|
बाबाजी के उपाय कों पूरी तनमयता से औरत सुनती रही , पर शायद ही वह इतने अनुष्ठानो कों याद रख पाए |
पर छोडिये , आपको आगे का दृश्य दिखाता हूँ,
औरत सहमे हाथो से बाबा जी का पैर छुआ और चढावा देके चुपचाप चल दी , जैसे की पिछली मुसीबत से बढ़कर कोई बड़ी मुसीबत मिल गयी हो|
हम चेले के साथ हल्के बातचीत करते रहे , थोड़े दूरी से पर स्पष्ट रूप से पूरा नजारा देखते रहे |
‘तुम लोग हटो , मुझे भी कुछ पूछना है बाबाजी से, मेरी माँ बोली |
माँ ने घर के बारे में पूछा , घर के और सदस्यों के बारे में पूछा , फिर मै घर का सबसे छोटा , पर नटखट नहीं , सबसे दुलारा , तीन बड़े भाई और एक बड़ी बहन , तो भला हमारे विषय मै पूछना कैसे छूट सकता था |
पूछने की संभावना और भी बढ़ जाती है , जबकी मेरी माँ रुढिवादी परम्पराओं , दैवीय प्रकोप ,भूत चुड़ैल , साधू – ओझा जैसी चीजों पर पूरा विश्वास रखती हो| इस बात का जब कभी हम तर्क – कुतर्क करते तो , अच्छी खासी डाट पडती | दो अच्छर पढ़ क्या लिए की ज़माने से आ रही मान्यताओ का इनकार करने लगे जैसे की हमारे पूर्वज बिलकुल पागल थे | आखिर माँ है , इसलिए हम चुप हो जाया करते |
माँ ने साधुजी से विनयपूर्वक पूछा , ‘ मेरे बेटे के विषय में बताइए गुरूजी , उसे नौकरी मिलेगी की नहीं|’
साधुजी आत्मविश्वास से सराबोर , अपनी जादू की छड़ी हवा में लहराई , सर कों झनझनाया और दमदार आवाज में बोले , ‘ नौकरी का संयोग तो था पर , लड़का आठवी की पढ़ाई कर छोड़ दिया , इसलिए कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती|’
मेरी माँ ने एकाएक मेरी तरह असहाय निगाह से देखा और मैंने इशारा किया और पूछो |
माँ ने लड़खड़ाते स्वर में बोला , ‘ लड़के के शादी के विषय में कुछ बताइए गुरूजी |’
जहा तक मुझे मालूम था की किसी साधू से हाथ दिखाना और कुछ पूछने में सर्व प्रिय विषय शादी ही होता है |
साधुजी कों अपनी प्रखर ज्ञान पर अटूट विश्वास था और शायद इस बात का उन्हे घमंड भी था की वह किसी के जीवन के विषय में वे उस सम्बंधित व्यक्ति से ज्यादा जानते है |
अपने चिरपरिचित अंदाज में उन्होंने कहा , ‘एक पत्नी है और एक बच्चा , पत्नी गर्भवती है , पूरे तीन बच्चे का संयोग है , इस समय पत्नी मायके में है|’
बाबा जी का हर शब्द जैसे मेरी माँ के मस्तिष्क कों झकझोर रहा हो ,कभी बाबा कों देखती और कभी मुझे , और मै सब सुन कर अनसुना करता रहा जैसे की यह नाटक मैंने पहले देख रखी हो , आसपास खादी पड़ोस की औरते भी आश्चर्य से बिलकुल हक्का बक्का | पर साधुजी तो अपनी सफलता के धुन में मस्त , पर चेले के मन में स्थिति के प्रति आशंका |
मेरी माँ जैसी किसी पिजड़े से शेर कों छोड़ दिया जाय , वैसे कड़ी आवाज में बोली ,’ साधुजी आप क्या बोले जा रहे है , आप क्या कह रहे हो|’
फिर क्या, बाबा येसी अप्रत्याशित आवाज कों सुन के एकाएक अपनी आँखे खोली और बदले हुए चेहेरे तथा माहौल कों बिलकुल महसूस किया | उनके आँखों में आत्मविश्वास की चमक जाती रही , चारो तरफ नजर घुमाया , चेले कों देखा , चेला भी कुछ आशंकित , पर दोनों कों कों कुछ पता नहीं की समस्या कहाँ है , बिलकुल किन्कर्ताव्यविमूध|
साधुजी ने मेरी माँ से दबे स्वर में कहा , ‘क्या हुआ पुत्री ?’
माँ ने झगडते हुए बोला , ‘ आप साधू हो , आप कों नहीं मालूम क्या अनाब- सनाब बोले जा रहे हो , मेरा बेटा कक्षा आठ तक पढ़ के छोड़ दिया , एक पत्नी और एक बच्चा , पत्नी गर्भवती , पूरे तीन बच्चे का संयोग ,और क्या बोला की सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी |
अब कौन रोक सकता था मेरी माँ कों अगर एक बार बरसना शुरू हो गयी , और उधर कभी साधू शिष्य कों देखता , शिष्य मुझे देखता , फिर शिष्य गुरु कों देखता| पास खादी औरते वस् तमाशा देख रही थी की अब क्या होने वाला है|
माँ ने कड़े स्वर में बोला , ‘मेरा बेटा अभी पढ़ रहा है , प्राथमिक विद्यालय में सरकारी टीचर है , शादी अभी हुयी नहीं , बच्चे तो बहुत दूर की बात और तुम क्या कह रहे हो उल्टा सीधा |
इतने कहते ही साधुजी की रही सही हिम्मत और मान ढहने लगा और सिहरते हुए बोले , ‘देखिये कभी-कभी गलती हो जाती है , मै फिर से देखता हू और तुरंत उन्होंने अपने जादू के थैले से कोई चिथड किताब निकाली और चश्मा लगा के किताब में बिलकुल घुस सा गए जैसे कई किताब पढाने की आड़ में अपना चेहरा छुपाने का प्रयास कर रहे है और कुछ देर बाद कुछ लार्बराते और लड़खड़ाते आवाज में बोलने का प्रयास किये पर तब तक देर हो चुकी थी , और उनकीआँखों में अपराध बोध स्पष्ट झलक रहा था |
मेरी माँ ने तुरंत लताडते हुए बोला , ‘आपकी भलाई इसी में है के आप अभी उठे और चल दे चुपचाप|’
साधुजी कों येसा करना उचित था और वैसे किये भी | अपना कमंडल छड़ी तथा थैला उठाये चल पड़े |
पर किसी कों मालूम नहीं की ये सब कैसे हो गया | न तो साधू कों , न तो इकठ्ठा हुयी औरतो कों और न ही मेरी माँ कों ही | अगर मालूम था तो सिर्फ दो लोगो कों – मुझे और शिष्य कों |
आइये बताता हू कैसे |
शिष्य मुझसे अनमने स्वर में बोला , ‘ आपको येसे नहीं करना चाहिये था |’
‘मैंने क्या किया, मंद स्वर में मैंने बोला|
शिष्य थोडा तगड़े स्वर में बोला , ‘आपने झूठ क्यों बोला?’
मै आत्म विश्वास के साथ उत्तर दिया , ‘ मैंने जानबूझकर झूठ बोला’
शिष्य ने फिर कहा , ‘ क्यों?’
मैंने कहा , ‘मेरे झूठ बोलने से क्या फर्क पड़ता है , अगर आप वास्तव में स्थिति प्रज्ञा है यो झूठ कों पकडिये और सही चीज बताईए |’
जब तक की शिष्य मुझसे बाते करता रहा , गुरूजी सर झुकाए , मन मंथन करते काफी आगे निकल गए , और फिर शिष्य भी तेजी से चलकर उनके पीछे लग गए | दोनों के मन में भारी अवशाद , शायद सुबह उठाते समय उन्होंने ये कल्पना भी नहीं की होगी की कुछ येसे होने वाला था |
हुआ यूं कि मै थोड़ा दूरी पर अमरूद के पेड़ के नीचे शिष्य के साथ हल्के मन से बाते कर रहा था|
तभी शिष्य ने मेरे विषय में कुछ पूछना शुरू किया , पता नहीं क्यों मेरे मन में शरारत या शंका वश कुछ अजीब सा प्रयोग करने की सोची , मेरे मन की शंका उस समय और बढ़ गयी जब शिष्य मेरे विषय में कुछ पूछता फिर अपनी भाषा में गुरूजी से कुछ बात करता , वही मैंने निश्चय किया कि देखता हू क्या होता है और जो भी उसने मेरे विषय में पूछा सब उलटा या गलत बताया , फिर क्या --------परिणाम आपके सामने था |
पर क्या मै ईशवरीय शक्ति में विश्वास नहीं करता हूँ ,मुझे मालूम नहीं , करता भी हूँ और नहीं भी |
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