भारत विविधताओं का देश है, और इन विविधताओं में अजब का तालमेल है। ऐसी मान्यता जनमानस में व्याप्त है। कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से नागालैंड तक रहन-सहन, बोल-भाषा, वेश-भूषा, खानपान, व्यवहार और संस्कृति में अद्भुत अंतर नजर आते हैं, फिर भी भारत प्रागैतिहासिक काल से आज २१वीं शताब्दी तक विदेशी आक्रमण और आतंरिक झंझावातों के बावजूद भारत सीना ताने मजबूत खड़ा हुआ है। इस बात पर लोगों का सीना फक्र से चौड़ा और गदगद हो जाता है।
पर की इस भूमि में इंसानियत को दफना देने वाली और मानवता का कत्ल करने वाली नियम कानून और प्रथाएं शासक वर्गों द्वारा बनाई गई, जैसे वर्ण व्यवस्था, जाति व्यस्था और छुआछूत। आदिवासियों और महिलाओं को भी कोई सम्मान जनक स्थान नही दिया गया। शासन व्यवस्था से जुड़े लोगों ने अपने लिए और अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए कानून्र बनाकर विशेषाधिकार सुरक्षित कर लिया। और बहुसंख्यक लोगों को तंगहाली और अपमानजनक जीवन जीने के लिए छोड़ दिया। इसका एक सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ इस देश को की सोने की चिड़िया कहा जाने वाला देश दुनिया के सामने पिछड़ गया। यहाँ के अय्याशी राजाओं, पाखंडी मंत्रियों, अन्धविश्वासी व्यवस्था और भेदभाव के जहर से मुट्ठी भर लोग आकर इस देश को गुलाम करते रहे, बर्बाद करते रहे।
अंग्रेजों के जाने के बाद और लोकतान्त्रिक संविधान होने के बावजूद भी सत्ता के मद में पागल शासक वर्ग आज भी उसी स्व विनाशकारी व्यवस्था को कायम रखना चाहता है, जिसमे उसके पास धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विशेषाधिकार सुरक्षित रहे।
‘सुलगती सच्चाई’ भारत के इसे असली तस्वीर को बयाँ करती है। एक ओर तो उच्च वर्ग अपनी शोहरत, खानदानी दम्भ और दिखावे में चूर, बदलती बयार में खुद को बदलने में अक्षम है, मजबूर होकर अपराधिक प्रवृति अपना रहा है, दूसरी तरफ निम्न वर्ग थोड़े संवैधानिक रियायतों से तिरस्कार और विरोध के बावजूद खुद को खड़ा करने का प्रयास कर रहा है।
अभी भी निम्न वर्ग की आजादी के रास्ते में शासक वर्ग काँटा बना हुआ है। वह अपनी शक्ति, सामर्थ्य तथा सत्ता की ताकत से निम्न वर्ग की राह में रोड़े खड़ा करता है।
भ्रष्ट आचरण और सत्ता के दुरूपयोग से भारत की छवि को धूमिल करता है, कलंकित करता है, जबकि उसे भारत और भारत में रहने वाले समस्त लोगों के समान उत्थान और विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए। भारत के पिछड़े होने का यह एक बड़ा कारण है।
जिस प्रकार शरीर के हर अंग और हिस्से के मजबूत होने से ही शरीर को स्वस्थ और ताकतवर कहा जा सकता है न की किसी विशेष अंग के जादा मजबूत होने और अनेक अंगों के कमजोर होने से, उसी प्रकार भारत के हर नागरिक के समान अवसर और समान विकास से ही भारत मजबूत बन सकता है।
‘सुलगती सच्चाई’ इसी सन्देश को आम जन मानस तक पहुचाने का प्रयास करती है।
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